डॉ. योगेश सुमठाणे, (Scientist Forest Products and Utilization BUAT, Banda)
पौधशाला में क्रमबद्ध तरीके से बनी क्यारियों को बीजवाड़ी कहा जाता बीज से लेकर पौध रोपण तक की प्रकिया का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसे मॉडल बनाने के लिए वैज्ञानिक एवं आधुनिक तरीका अपनाया जाता है। अतः पौधशाला वातावरण है जहाँ स्वस्थ पौधे पैदा किए जा सकें।
नर्सरी के स्थान का चयन :
नर्सरी एक ऐसे स्थान का चयन कर के स्थापित करनी चाहिए जहाँ पानी का हो तथा पानी के निकासी की भी उत्तम व्यवस्था हो। अच्छी मिट्टी कम से कम 30-40 की गहराई तक होनी चाहिए।
आधुनिक पौधशाला की विशेषताए :
आधुनिक पौधशाला में निम्न तीन चीजों का ख्याल रखना चाहिए।
- आधुनिक यंत्र तथा सामग्री।
- उच्च गुण वाले वृक्षों का बीज तथा कायिक प्रजनन के लिए चयन।
- सही तथा अच्छे मिश्रण का उपयोग।
मिट्टी मिट्टी :
का उपयोग व्यापक रुप से प्रवर्धन के लिये किया जाता है। जीवाश्म युक्त बलुई दोमट भूमि जिसका पी.एच.मान 5.5 से 7.5 के मध्य हो तथा जल निकास की उचित व्यवस्था हो, उपयुक्त होती है।
बालू या बजरी :
प्रवर्धन के लिए बालू का उपयोग किया जाता है। नदियों से प्राप्त बालू में किसी प्रकार के पोषक तत्व नहीं होते हैं। अतः कलमों में जड़ें निकलते ही या बीजों के स्तरण के बाद माध्यम बदल देना चाहिए। प्रयोग के पहले बालू को फार्मलीन से उपचारित कर लेना लाभप्रद होता है।
कम्पोस्ट खाद नाडेप कम्पोस्ट खाद :
नाडेप कम्पोस्ट खाद बनाने हेतु गड्ढा की लम्बाई 10.0 फीट चौड़ाई 6.0 फीट एवं गहराई 3.0 फीट जालीदार गड्ढा जिसमें एक तरफ की दीवार में छिद्र बनाये जाते हैं। खेत से प्राप्त घास, खरपतवार, पत्तियां आदि 15 फट की परत बनाए, पानी छिड़कें और ऊपर से गोबर की घोल की 0.5 फट की परत बना दें। दवारा पुआल घास पत्ता, कड़ा करकट आदि की परत एक फट की बनाएं और ऊपर गोबर के घोलजी 65 फुट का परत बनाए।
इस प्रकार परत पर परत बनाई जाये और गडढा परा भर दें एवं ऊमागोबर आर ‘मिट्टी की परत से ढक देवें। बीच-बीच में पानी का छिड़काव अवश्य करें।
अच्छा पोटिंग मिश्रण :
पौधों का अच्छा विकास मिश्रण में होता है। अच्छे मिश्रण में कुछ मोटे पर्याप्त हवा के रिक्त स्थान (25-35 प्रतिशत की करते हैं। मिश्रण में पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ और तथा कुछ छोटे मिट्टी के कणों के काम वातन porosity) प्रदान करते हैं। पिया तत्व होना जरुरी होता है।
- हवा से आक्सीजन जड़ों तक आसानी से परे आसानी से पहुँच सकती है। अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाता है तथा पानी का जमाव जड़ों के पास नहीं होता है।
- जड़े अच्छी तरह से बिना रूकावट के वृद्धि करती तथा फैलती है।
- सही तथा समचित मात्रा में पानी को अपने में रोकती है।
- मुख्य कार्बनिक पदार्थों को कोरि-धीर छोड़ना तथा यह क्रिया क्षयकारकों के द्वारा होती है।
पोषक तत्त्व :
साधारण रासायनिक पदार्थों को जीवित और विकास के लिएमहत्वपूर्ण हैं। पोषक तत्त्व है, नायट्रोजन, जैसे यूरिया नाइटेट और अमोनियम लवण, कार्बनिक पदार्थ के गौगिकों में, फास्फोरस एक अघुलनशील रुप में आमतौर पर है लेकिन जब यह फॉस्फेट के विभिन्न प्रकार के रुप में होता है, और पोटेशियम आ. घुलनशील लवण होता है।
पैधों पर सूक्ष्म जीव के प्रभाव :
सभी पेड़ सूक्ष्म जीवों से प्रभावित होते हैं, उदाहरण के लिए उनमें कुछ क्षयकारक है, जो लिटर को तोड़कर पोषक तत्वों को रिलीज करने में मदद करते हैं तथा यह ठीक जडों के बाहर रहते हैं या पत्तियों की सतह पर। अन्य प्रकार के मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जीव पेड़ के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध बनाते हैं।
कितना उर्वरक डालना चाहिए?
यह पहले ही नर्सरी या मिट्टी potting मिश्रण में कितना डाला गया है पर निर्भर करेगा तथा पानी अथवा सूक्ष्म जीवों के द्वारा कितनी आपूर्ति हो रही है यह भी महत्वपूर्ण होगा। पेड़ नर्सरी के लिए खुराक कृषि फसलों की पैदावार में वृद्धि की तलना में कम लगेगी। प्रायः यह पाया गया है कि
- पौटिंग मिश्रण : 1-5 ग्रा.खाद प्रति लीटर मिश्रण अथवा 1.5 ग्रा. प्रति लीटर धीमें मुक्त होने वाली खादें।
- नर्सरी बैंड : 25-50 ग्रा. खाद प्रति वर्गमीटर में 20 से.मी. गहराई तक।
- पानी में घोलकर: 3-5 ग्रा. प्रति लीटर।
नर्सरी में बीज बुवाई :
बीज की बुवाई नर्सरी में तीन तरह से की जा सकती है।
- क्यारी
- प्लास्टिक की थैली में तथा
- जड़ साधक (Roottrainer) में
क्यारी की तैयारी,बीजवाडी में सडी गोबर, कम्पोस्ट अथवा पत्ती की खाद मिलाकर 4-5 बार जुताई करके अच्छी प्रकार तैयार करना चाहिए। क्यारियां उचित आकार की 2.2-5.0 मीटर। लम्बी, 11-25 मीटर चौड़ी तथा10-15 सेमी. उठी होनी चाहिए।
पोलीथीन की थैलियों में :
आजकल पोलीथीन की कलियो, जलिया, जो दोनों तरफ खली हो. जस्ते के बने सांचे, विभिन्न आकार के मिट्टी के गमले इत्यादि का प्रयोग बीज बोने के लिए बढता जा रहा है। इनमें रख रखाव अचूंम हो जाता है। जिन पौधों में मूसला जो अधिक विकसित होने के कारण रोपण में समस्या होती है, उनको इन वर्तनों में सोने का अनुमोदन किया जाता है। प्रयक्त वर्तनों के साथ रोपण कर देने पर जहों को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती। पोलीथीन की थैलियों तथा गमले में पौधों को उचित दिन तक रखने पर, जहों के मुह जाने की संभावना रहती है। अत आजकल इसकी जगह 10 x 26 सेमी आकार की पोलीथीन की नालियों का प्रयोग व्यवसायिक स्तर पर बढ़ता जा रहा है।
जड़ साधक या रुट ट्रेनर्स :
- यह जहों तथा तने की अच्छी वृद्धि में सहायक होते है एवं अधिक पानी को बाहर निकाल देते हैं।
- यह सस्ते, कम वजन के तथा ज्यादा समय तक चलते है।
- यह सहित पाढप को पौधारोपण के समय आसानी से निकाल देते है।
- रयह प्लास्टिक पॉलिथीन, जैव क्षयकारक, क्ले तथा पेपर से बनाए जाते हैं।
- जड़े कुंडलित नहीं होती है।
- आसानी से परिवहन किए जा सकते हैं।
गुणवत्तायुक्त पौध़ :
- एक ऐसा पौधा जिसकी जड़ प्रणाली धनी हो लेकिन पात्र बाध्य न हो तथा बहुत ज्यादा नुकसान के बिना लगाया जा सके।
- एक मध्यम आकार की तना प्रणाली हो, जो जह रोपण सदमें के बाद बिना मुरझाए पुन विकास करने लगे।
- कीट और रोगों से मुक्त हो।
- यह पारगमन में मध्यम जलवायु और यांत्रिक तनाव सहन कर सके।
प्रवर्धन की विभिन्न विधियाँ :
किसी भी पौधे को दो तरह से प्रवर्धित किया जा सकता है। बीज तथा कायिक प्रवर्धन द्वारा
बीज द्वारा प्रवर्धन :
किसी भी बीज में भूण तथा भोज्य पदार्थ बीज-पत्र (Cotyledons) और भ्रूणपोष (Endosperm) के रुप में विद्यमान होते हैं। जिस समय पैतृक पौधे से बीज अलग होता है। यह प्राय सषप्त अवस्था में रहता है। उसे देखने मात्र से बीज से अन्दर विद्यमान सक्रियता का बोध नहीं हो पाता है।
बीज गुणवत्ता :
बीज की गुणवत्ता संतान के ऊपर तथा उत्पादन पर सीधा प्रभाव डालती है। यह तीन तरह की होती है।
- शारीरिक गुणवत्ता – गुणवत्ता शारीरिक विशेषताओं जैसे आकार, रंग, उम बीज कोट।
- हालत, दरारें कीट और रोग हमलों, या अन्य नुकसान की घटना से संबंधित है।
- कार्यिकी गुणवता – परिपक्वता, नमी सामग्री या अंकुरण की क्षमता से संबंधित है।
- आनुवंशिकी गुणवत्ता – गुणवत्ता माता-पिता के पेड़ से विरासत में मिली विशेषताओं से संबंधित है।
व्यक्तिगत पेड़ या बहुत से पेड़ जिनसे बीज एकत्र किया जाता है उन्हें बीज सोत कहा जाता है। बीज स्रोतों को बीज की गुणवत्ता के उत्पादन की तीव्रता के अनुसार चार प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- Seed Trees : बीजपेह
- Seed Stands : बीज के पेड़ों का समूह
- Seed Production Areas : बीज उत्पादन क्षेत्र
- Seed orchards : बीज बाग
कायिक प्रवर्धन :
कुछ पौधों की प्रजातियों में पौधे के किसी भाग द्वारा प्रवर्धन होता है। इस प्रवर्धन को कायिक प्रवर्धन कहते है। इस विधि में पौधे के किसी भाग (अंग) से दसरा नया पौधा तैयार किया जाता है इसमें,
- मूल प्ररोह, Root sucker
- तना प्ररोह, Stem sucker
- कलम, Cutting
- उपरिभूस्तारी दाव लगाना, layering
- उपरोपण और कली लगाना आदि सम्मिलित है।
गुणवत्ता युक्त रोपण सामग्री का उत्पादन :
जड़ प्रणाली के आकार के साथ जड़ का प्रकार भी महत्वपूर्ण हैं। ज्यादातर अच्छे प्लाटिंग स्टॉक में बहुत ज्यादा छोटी जड़ें होनी चाहिए। एक एकल मुख्य जड़ के बजाय एक घनी जड़ प्रणाली ठीक है। जो अच्छी तरह से अवशोषित करके संरचनात्मक जड़ों में वृद्धि कर सकती हैं।
अच्छा जड़ तंत्र
- एक अच्छा जड़ तंत्र प्राप्त करने के लिए।
- उपयुक्त कंटेनर और एक प्रभावी पौटिग मिश्रण का उपयोग करें।
- ध्यान से और नियमित रुप से पानी दें।
- कम से कम तनाव।
- दें कई शाखा जड़ों को प्रोत्साहित करने के लिए वर्तन के अन्दर जड़ों की पूनिंग करें।
तना प्रणाली एक अच्छी तना प्रणाली के लिए
- तना प्रणाली जड़ तंत्र से ज्यादा बड़ी न हो।
- ज्यादा लंबी न हो।
- पतली तथा कमजोर न हो।
- एक मजबूत, कम से कम तना प्रणाली अक्सर सबसे अच्छा हो सकता है।
शाखा व्यवस्था :
- प्रमुख शाखाओं और तने को नहीं छूना चाहिए शाखाओं 2/3 टूक पेड़ पर मुख्य शाखा अन्य शाखाओं से दूरी पर होना चाहिए।
- छायादार पेड़ पर मुख्य शाखा अन्य शाखाओं से दूरी पर होना चाहिए।
पौधशाला की बीमारियों तथा कारण
- अंकुरित बीज और युवा (नवोद्भिद) पौधों पर हॅपिंग ऑफ।
- जड़, कॉलर या स्टेम सड़न आदि जो कई प्रकार की फंफूढों से हो सकती है।
- पत्ते पर पत्ता स्पॉट।
निदान :
यह बीमारियों उस समय अधिक होती है जब पौधों के विकास की परिस्थितियाँ ठीक नहीं होती हैं जैसे कि,
- नर्सरी मिट्टी potting मिक्सचर कमजोर हो।
- मिट्टी के ओवर-firming होने पर जब कंटेनर या बेड में रोपाईकी हो।
- बहुत घनी छाया होने पर।
- लगातार अधिक पानी देने पर ।
- युवा पेड़ों के आसपास पर्याप्त हवा परिसंचरण नहीं।
- पौधों को एक दूसरे के ज्यादा करीब रखने पर।
नर्सरी कीट :
कवक और बैक्टीरिया की तरह, बहुत छोटे कीट मिट्टी में रहते हैं तथा अधिकांश हाँनिरहित हैं, और कई उपयोगी क्षयकारक हैं, हालांकि कुछ प्रकार के कीट से जड़ों की क्षति या युवा पेड़ों की मौत का कारण होते हैं, खासकर अगर उनकी संख्या बढ़ जाती है। इसी तरह कुछ कीड़े तने को मारते हैं तथा उन पर हमला कर उन्हें और कमजोर करते हैं वह हैं,
- पौध के रस को चूसने वाले कीट यह कीट भोजन बनाने वाली कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते है तथा कभी-कभी नव विकसित पौधे में विषाणु रोग फैलाते हैं।
- पत्ती खाने वाले कीट।
- तना छेदक कीट।
- कट-कीड़े।
- दीमक कभी कभी युवा नर्सरी के पेड़ों पर हमला कर उन्हें नष्ट करते हैं।
निदान :
उनमें से किसी भी लक्षण के लिए दैनिक और साप्ताहिक निरीक्षण करें तथाः
- कीटों का युवा पेड़ों पर या आस पास की वनस्पति पर निर्माण शुरु करते समय उन पर डिटर्जेट युक्त पानी का छिड़काव करें।
- असकमित उपकरण और कार्य क्षेत्र के माध्यम से इस के रुप में कई कीटों के अंडे का मारने, और मृत पत्तियों और अन्य सामग्री जहाँ कीड़े छिप सकते हैं, को साफ करे और यदि आवश्यक हो तो।
- एक उपयुक्त कीट नाशक का उपयोग करके इस प्रकार उचित एवं वैज्ञानिक ढंग से नर्सरी की स्थापना एवं प्रबंधन करनस उत्तम एवं अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
डॉ. योगेश सुमठाणे, (Scientist Forest Products and Utilization BUAT, Banda)