पंछियों का आदमी डॉ. सलीम अली

डॉ. योगेश वाय. सुमठाणे ॲन्ड गंगाधर प्रजापती, College of Forestry, Banda, Banda University of Agriculture and Technology, Banda

बहुत से लोग आजकल जानवरों से प्रेम करने का दावा करते है, जो सच में जानवरो से प्रेम करते हैंलेकीन इससे भी बढ़कर कुछ लोग ऐसे भी होते है, जो जानवरों के लिए इतने गंभीर होते है कि अपना पूरा जीवन सिर्फ उन्ही की देखभाल में लगा देते हैं। ऐसे ही एक शस थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन सिर्फ पक्षियों के बारे में अध्ययन करने और उनको नया जीवन देने में समर्पित कर दिया। उस महान पक्षी-प्रेमी का नाम ‘सलीम अली’ हैं, जो कि भारत में ‘बर्ड मैंन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर है। एक भारतीय पक्षी वैज्ञानिक, वन्यजीव संरक्षणवादी और प्रकृतिवादी थे। इनकी पक्षियों मे विस्तृत जानकारी के कारण इन्हे ‘परिदों का विश्वकोष’ भी कहते है।

सलीम अली का प्रारंभिक जीवन :

सलीम अली का पुरा नाम सलीम मुईनुद्दीन अब्दुल अली है । उनका जन्म 12 नम्बर 1896 मे बॉम्बे के एक सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में हुआ। उनका पूरा नाम सलीम मोईनुद्दीन अब्दुल अली था। वह अपने माता-‍पिता की नवी संतान थे। जब तक बालक एक साल के थे वो उनके पिता मोईनुद्दीन की मृत्यू हो गयी। इसका दु:ख उनकी माँ सहन नहीं कर पायी और पिता की मृत्यू के वे साल बाद ही उनकी माँ जीनत-उल-निशा का साया भी उनके सिर से उठ गया।  इसके बाद उनकी और उनके भाई-बहनों की देख-रेख का जिम्मा उनके चाचा अनिरूद्दीन तैयाबजी और चाची हनिदा के उधर आ गया, वो मुंबई के खेतवाडी इलाके मे अपना भरण-पोषण कर रहे थे। इसके बाद उनकी और उनके भाई बहनों की देख-भाल का जिम्मा उनके चाचा अनिरूद्दीन तैमाबजी और चाची हमीदा के उधर आ गया । वह मुंबई के खेतवाडी इलाके में अपना सुखी जीवन जी रहे थे । 

सलीम अली का शिक्षा :

सलीम और उनके सभी भाई-बहनों की प्रारंभिक शिक्षा एक ही स्कूल सिरगाम स्थित जनता बाईबिल मेडिकल मिशन गर्ल्स स्कूल (हाई स्कूल) और आगे की पढ़ाई मुंबई के सेंट लेवियर में हुई । बचपन से सलीम अली को  सिर दर्द की गंभीर बीमारी से पीड़ित थी। फिर एक दिन किसी ने उन्हे सुझाव दिया की वह सिंध की शुष्क हवा में जाए हो सकता है उन्हें इससे ठीक होने में मदद मिले और उनका सुझाव मानकर वह अपने चाचा के साथ सिंध चले गए। वह कई साल सिंध रहने के बाद फिर से मुंबई लौट आये और उसके बाद साल 1913 में उन्होंने बड़ी मुश्‍किल से बॉम्बे विश्वविद्यालय से द़सवी की परीक्षा उत्तीर्ण है।

सलीम अली का वैज्ञानिक जीवन :‍

बचपन मे कएक बार सलीम ने अपने खेलने वाली बंदूक से पेड़ में बैठी चिडियाँ को मार दिया। जिसके बाद सलीम उस चिडियाँ को उठाकर अपने चाचा के पास ले गए और उन्हे दिखाया । पक्षी के गले में पीला धब्बा देखकर तो चौक गए । लेकीन चाचा भी पक्षी को पहचान न सके । सलीम के मन में पक्षी के बारे में जानने की जिज्ञासा खत्म नहीं हो रही थी । फिर उस पक्षी को लेकर तो तेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के ऑफिस ले गए । जहाँ तो पक्षी विशेषण डब्ल्यू. एस. मिलार्ड से मिले और सलीम ने उनसे उस पक्षी के बारे में पूछा लेकिन मिलार्ड ने उन्हे कुछ नहीं बताया ।

मिलार्ड उन्हे बिना बताए एक कमरे में ले गए और उन्हें बहुत सारे पक्षी दिखाया, जो नर पक्षी था और उसका नाम बया था जिसके गले में वर्ष ऋतु में वर्षा ऋतु मे ही पीले धब्बे बनते है । उस पक्षी के बारे में जानकर उनका पक्षी के प्रति और लगाव बंद गया। पक्षी के तारे और ज्यादा बारीक से जानने के लिए उनके मन में बैचनी होने लगी ।

कॉलेज का इनका पहला साल काफी मुश्लिकलों से भरा था । जिसके बाद सलीम ने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार के वॉलफ्रेम माइनिंग और इमारती लकड़ियों के व्यापार की देखरेख के लिए टेवोम वर्मा चल गए । वर्मा जाना उनका सबसे यादगार पल था  क्योंकि यहाँ के घने जंगलो में उन्हे कई पक्षी देखने को मिले। करीब सात साल बाद उन्होंने जंतु विज्ञान में डिग्री हासिल की, जिसके बाद उनको ‘बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ के संग्रहालय के उनकी गाईड के रूप में नियुक्‍ति हुई । गाईड के रूप  में वह लोगों को डरे हुए पक्षी के बारे में बताने लगे । इस काम के दौरान ‍उन्हें में अनुभव हुआ कि उनके पास अभी भी जानकारी प्राप्त कर जा सकती है । जब इसका रहन-सहन करीब से देखा जाए । जिसके लिए वह जर्मनी गए और विश्वविद्यालय पक्षी वैज्ञानिक डाक्टर दूर्बिन स्ट्रॉसमैन से लिए । करीब एक साल तक जर्मनी में रहने के बाद वह मुंबई लौट आये लेकिन तब तक संग्राहलय में उनकी गाईड की नौकरी समाप्त कर दी गयी थी ।

रहने का ठिकाना न होने कारण सलीम बड़े परेशान हो गए था । लेकिन सलीम की किस्मत अच्छी निकली कि उनकी पली तहमीनाअली का माहिम में एक छोटा सा मकान था वहाँ सलीम को रहने की जगह मिल गयी । तहमीना के घर में एक पेड़ था जिस पर तमा पक्षी ने अपना घर बनाया हुआ था । सलीम सारा दिन पेड़ के नीचे बैठकर उस पक्षी के सारे क्रिमाकलापों को देखते और उनको नोटबुक मे लिखते । उन्होंने तमा पक्षी के सारे क्रियाकलापों और व्यवहार को एक शोध निबंध के रूप में प्रकाशित किया । साल 1930 में छपा सह निबंध उनकी प्रसिद्धी के लिए बहुत महत्वपूर्ण के आधार पर उन्होंने “द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स” लिखी जो साल 1941 में प्रकाशित हुई । उसके बाद वो लगातार पक्षियों के बारे में और ज्यादा बुक्स लिखने लगे । साल 1948 में सलीम और विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक दिनलैन रिप्ले ने एक प्रोजेक्ट की शुरुवात की जिसमें उन्होंने 10 भाषों में भारत और पाकिस्तान के पक्षियों के बारे जानकारी लिखी । जिस पुस्तक का नाम “हैंड बुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ  इंडियन खंड पाकिस्तान” है । उन्होंने अपनी बुक (आत्मकथा) “द पॉल ऑफ रू स्पैरो” में अपने जीवन में घटित अनेक घटनाओं के बारे में लिखा है ।  

सम्मान :

डॉ. सलीम अली ने प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उनके इस अतुलनीय योगदान के लिए उन्हे सरकार द्वारा साल 1958 में पद्भूषण और साल 1976 में पद्वविभूषण से सम्मानित किया गया, साथ ही उन्हे अलीगढ़ मुस्‍लिम विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और आंध्र विश्‍वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट डिग्ग्री से सम्मानित किया गया । साल 1990 में उनकी माद में भारत सरकार द्वारा कोयंबटूर के पास अनेकट्टी नामक स्थान पर सलीम अली सेंटर फॉर ओर्नियोलॉजी एंड नॅचुरल हिस्ट्री केन्द्र स्थापित किया गया ।  

निधन :

लम्बे समय से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे ।  91 वर्षीय सलीम अली का 1987 में निधन हा ।  1990 में भारत सरकार द्वारा कोयंबटूर में सलीम अली सेंटर  फॉर ओर्नियोलॉजी एंड नॅचुरल हिस्ट्री (SACCN) को स्थापित किया गया ।

गोवा सरकार ने सलीम अली बर्ड सेंचुरी की स्थापना की और बम्बई में B.N.H.S.के स्थान का पुन: नामकरण करते हुए डॉ. सलीम अली चौक किया गया ।

डॉ. योगेश वाय. सुमठाणे ॲन्ड गंगाधर प्रजापती, College of Forestry, Banda, Banda University of Agriculture and Technology, Banda

Prajwal Digital

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